नाम तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई स्वतंत्रता सेनानी हो। जैसे तिलका मांझी। मैं इन सज्जन पर न लिखता अगर डा. एन के कल्ला ने एक रेखाचित्र बना कर मेरी ओर न सरकाया होता। डा. कल्ला हमारे चीफ मैडिकल डायरेक्टर हैं। हम उत्तर-मध्य रेलवे की क्षेत्रीय उपभोक्ता सलाहकार समिति की बैठक में समिति के सदस्यों के भाषण सुन रहे थे। ऐसे में इधर उधर कलम चलाने और डॉडल (dawdle – फुर्सत की खुराफात) करने को समय मिल जाता है। उसी में एक अलग से लग रहे चरित्र श्री राजाराम मांझी का रेखाचित्र डा. कल्ला ने बना डाला।
आप श्री राजाराम मांझी का रेखा चित्र और उनका मोबाइल से लिया चित्र देखें –
श्री राजाराम मांझी
![]() |
![]() |
राजाराम मांझी चुपचाप बैठे थे बैठक में। अचानक उनकी गोल के एक सदस्य पर किसी स्थानीय सदस्य ने टिप्पणी कर दी। इतना बहुत था उन्हें उत्तेजित करने को। वे खड़े हो कर भोजपुरी मिश्रित हिन्दी में धाराप्रवाह बोलने लगे। बहुत ही प्रभावशाली था उनका भाषा प्रयोग। वैसी भाषा ब्लॉग पर आनी चाहिये।
बाबा तिलका मांझी (1750-84) पहले संथाल वीर थे जिन्होने अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी संघर्ष किया। उनका गोफन मारक अस्त्र था। उससे उन्होने अनेक अंग्रेजों को परलोक भेजा। अन्तत: अंग्रेजों की एक बड़ी सेना भागलपुर के तिलकपुर जंगल को घेरने भेजी गयी। बाबा तिलका मांझी पकड़े गये। उन्हे फांसी न दे कर एक घोड़े की पूंछ से बांध कर भागलपुर तक घसीटा गया। उनके क्षत-विक्षत शरीर को कई दिन बरगद के वृक्ष से लटका कर रखा गया। |
भोजन के समय सब लोग प्लेट में खा रहे थे। मांझी जी अखबार को चौपर्त कर उसमें भोज्य सामग्री ले कर खाते हुये टहल रहे थे हॉल में। किसी ने कौतूहल वश कारण पूछ लिया। उन्होंने बताया कि प्लेट अशुद्ध होती है। यह समझ नहीं आया कि कृत्रिम अजैव रसायन से बनी स्याही के साथ छपा अखबार कैसे शुद्ध हो सकता है? पर यह भारत है और उपभोक्ता सलाहकार बैठक में विचित्र किन्तु सत्य भारत के दर्शन हो जाते हैं!
श्री राजाराम मांझी के दो अन्य चित्र
दिलचस्प, न केवल राजाराम जी की भाषा को यहां जगह मिलनी चाहिए बल्कि उनसे पूरी एक बातचीत को भी!!
LikeLike
नामों में तो विकट लोचा है। बरसों पहले वीरजारा नामक फिल्म में इस लपेटे में देखने चला गया कि किसी स्वतंत्रता सेनानी पर होगी। पर फिलिम कुछ और निकली।ये उपभोक्ता सलाहकार समिति में लेखकों और व्यंगकारों, ब्लागरों का भी कोटा होना चाहिए। उन्हे भी तो रेलवे के सामने अपनी बात रखने का हक मिलना चाहिए।
LikeLike
बहुत दिलचस्प शख्स है…..
LikeLike
गजबे हैं, माझी साहब …….
LikeLike
आज़ादी हासिल करने मेँ, अनगिनती शहीदोँ का खून बहा है -राजाराम माँझी, क्या वास्तव मेँ मल्लाह कौम के थे ?उनके बारे मेँ और भी बतायेँ– – लावण्या
LikeLike
टैगोर और निराला की छवि धूमिल कर देने वाले माझी को प्रणाम…आपको भी…
LikeLike
bhashan ke ansh ki bahut jor se pratiksha hai.Please sir,jaldi daliye post par.
LikeLike
आपके डा. कल्ला तो कमाल का रेखाचित्र बनाते हैं…
LikeLike