
फोटो पुरानी है। दशा वर्तमान है। दशा आराम मांगती है ब्लॉगरी से। दफ्तर का काम तो पीछा छोड़ने से रहा। वहां गले में पट्टा बांध कर बैठते हैं। लोगों को बताना पड़ता है क्या बीमारी है और कबसे है। क्या व्यायाम करते हैं, आदि, आदि। लोग च्च-च्च करते हैं पर फिर काम की बात पर लौट आते हैं। जान छोड़ते नहीं।
खांसी बन्द हो, सर्वाइकल खिंचाव मिटे तो लिखने और टिप्पणी आदि करने का रुटीन बनाया जाये।
अभी तो आराम का मन करता है – जो बहुत बदा नहीं है। ट्रेनों का अबाध आवागमन धकियाता है। चैन नहीं लेने देता। पग पग पर निर्णय मांगता है। लिहाजा ब्लॉगिंग का टाइम कट। बाकी, रेल का काम तो चलाना ही होगा! राशन-पानी उसी से मिलता है।
वैसे दशा ऐसी खराब नहीं कि सहानुभूति की टिप्पणियों की जरूरत पड़े। लोग चुपचाप सटक लेते हैं। हम कम से कम अपनी कार्टूनीय फोटो दिखा कर सटक रहे हैं!
और ब्लॉगिंग का क्या, जब लगा कि कुछ ठेला जा सकता है, लौट लेंगे।
अच्छा जी, नमस्ते!
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Author: Gyan Dutt Pandey
Exploring village life.
Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges.
Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP.
Blog: https://halchal.blog/
Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt
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ऐसा लग रहा है मानो किसी बड़ी सिद्धि के लिए कोई योगी/साधक कठिन साधना में लगा है .हम बीमारी नहीं देखते . नहीं तो सहानुभूति प्रकट करने को ‘मोड’ में आना पड़ेगा . आपको तो प्रेरक-उत्प्रेरक के रूप में देखना ही भाता है . जल्दी हटाइए इस छींकेनुमा गलपट्टी को .
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होमिओपैथी में जाएँ, आप पूर्णतयः स्वस्थ हो जायेंगे ! यह असाध्य ( एलोपैथी के हिसाब से ) कष्ट मैंने २४ साल पहले सहा था,
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बड़ी बुरी बीमारी है मेरी माँ को भी है.पर यह बीमारी तो बुरे पोस्चर का नतीजा होती है आपको कैसे लगी ?
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