एक महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रिय सत्येन्द जी की है –
जैसा कि आपके लेख से विदित हुआ कि प्लास्टिक को एक गड्डे में डाला गया है एवं उस पर रेत दल दी गयी है , यह पूर्ण समाधान नही है!
प्लास्टिक भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. उम्मीद करता हूँ आपने प्लास्टिक और अन्य हानिकारक पदार्थो का, उचित विचार के साथ पूर्ण समाधान किया है!
सत्येन्द्र जी सही कह रहे हैं। प्लास्टिक का जैविक क्षरण अगले ८०-१०० सालों में नहीं होने जा रहा। और जो क्षरण होगा भी उसके लिये प्रकाश और वायु की आवश्यकता है। लिहाजा खुले लैण्डफिल में इसका सही प्रकार से डिस्पोजल ही उपाय है।
पर उससे कहीं बेहतर है कि प्लास्टिक का री-साइकलिंग किया जाये। सड़क बनाने और फर्नीचर निर्माण में प्रयोग सम्म्भव हैं। मैने ग्रमीणों को सन की बजाय पॉलीथीन के रेशे बना उससे रस्सी बुनते देखा है। कुछ उससे चटाई या दरी बनाते हैं। नया शब्द है क्रेडल-टू-क्रेडल (Cradle to cradle) निर्माण – जिसमें सब कुछ री-साइकल हो जाता है। प्लास्टिक के साथ वैसा हो सके तो कितना अच्छा हो।
बायो-डीग्रेडेबल प्लास्टिक की भी चर्चा है। जहां सामान्य प्लास्टिक ८०-१०० साल लेगा क्षरण में, बायो डीग्रेडेबल प्लास्टिक १८-३८ महीने में जैवीय पदार्थ में बदल जायेगा। पर उस क्षरण के लिये भी उपयुक्त परिस्थितियां चाहियें और वैसा न होने पर बहुत समय लग सकता है। कुल मिला कर बायो-डीग्रेडेबल प्लास्टिक अभी वाणिज्यिक तौर पर खरा नहीं उतरा है।
यह पोस्ट पब्लिश करने का औचित्य मात्र यह है कि आज १४ नवम्बर के दिन मेरी उपस्थिति दर्ज हो जाये। अन्यथा, गर्दन के दर्द और काम के बोझ के चलते मन रिक्त सा है। चलें, दफ्तर वाले फोन करने की श्रृंखला शुरू करने जा रहे हैं – ट्रेन गाड़ियों के परिचालन की पोजीशन देने की!