वाराणसी वरुणा से असी तक का क्षेत्र है। काशी कहां से कहां तक है? उस दिन मैने गोमती के संगम पर मार्कण्डेय महादेव का स्थल देखा – उसे दूसरी काशी भी कहा जाता है। तब लगा कि काशी शायद गोमती से अस्सी तक का क्षेत्र हो।
यही वह क्षेत्र है जहां काशी के राजा दिवोदास ने अपनी पुत्रियों – अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका का स्वयम्वर किया था और भीष्म उनका अपहरण कर ले गये थे। कैथी ग्राम का क्षेत्र। अगर काशी अनेक बार बसी-बिगड़ी हो तो शायद यह काशी का प्रमुख क्षेत्र रहा हो कभी। वैसे भी, गंगा नदी की निर्मल धारा और स्थान का सौन्दर्य उसे एक अनूठी पवित्रता प्रदान करते ही हैं।
मैं अपने सहकर्मी प्रवीण पाण्डेय के साथ औंड़िहार-रजवाड़ी के बीच बनने वाले रेलवे के नये पुल को देखने जा रहा था। हम सवेरे वाराणसी से चले थे। रास्ते में प्रवीण ने सुझाया कि गंगा-गोमती के संगम स्थल को देखते चलें; जहां गंगा लगभग नब्बे अंश के कोण पर मुड़ती हैं। हमारे साथ उस खण्ड के यातायात निरीक्षक श्री अरुण कुमार सिंह थे। उन्होने बताया कि कैथी गांव है वह। वहां मार्कण्डेय महादेव का मन्दिर भी है। मन्दिर में रुचि नहीं बनी, पर गंगा-गोमती संगम और घाट के नाम से जो आकर्षण था, उससे हम घाट की ओर मुड़ लिये। “पहले गंगा निहार लें, फिर पुल देखने चलेंगे।”

लगभग ग्रामीण क्षेत्र। गंगा किनारे घाट भी कोई पक्का नहीं था। घाट पर टटरी लगी मचान नुमा दुकाने या पण्डा लोगों की चौकियाँ। कुछ औरतें नहा रही थीं, कुछ जमीन पर चूल्हा सुलगाये कड़ाही में रोट उतारने/लपसी बनाने का उपक्रम कर रही थीं। पास में ईन्धन के रूप में रन्हठा या सरपत की घास नजर आ रही थी।… लोग थे, उनमें उत्सव का माहौल था; न गन्दगी थी और न पण्डा-पुजारियों, गोसाईंयों की झिक झिक। और क्या चाहिये एक धर्मो-टूरिस्ट जगह में। हां, गंगा जी का वहां होना एक पुण्य़-दर्शनीय स्थान को अनूठा बेस-तत्व प्रदान कर रहा था। और गंगाजल भी पर्याप्त स्वच्छ तथा पर्याप्त मात्रा में।
ऐसी जगह जहां रहा जा सकता है। पर कौन कितनी जगह रह सकता है? यूं अगर काशी के समीप रहना हो तो यह दूसरी काशी बहुत सही जगह है। थोड़ी दूर पर गोमती नदी का संगम है और उसके आगे गंगा एक लगभग 90 अंश का टर्न लेती हैं। प्रवीण ने बताया कि वह स्थान भी बहुत रमणीय है। अगली बारी लगेगा वहां का चक्कर!
काशी दर्शन अच्छा है। समकोण देखने की इच्छा है।
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यह तो बढ़िया रहा। समकोण पर तो हमारी भी नज़र नहीं गई!
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गोमती और गंगाजी के संगम के कारण और अधिुक महत्वपूर्ण बन जाता है
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आप के ब्लॉग के द्वारा मै भी काशी दर्शन कर ले रहा हूँ। आज ही आप के ब्लॉग पर जगदेव पुरी जी से सम्बंधित पोस्ट पढ़ी , अच्छा लगा पढ़ कर।
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‘Gomat-Ganga Ka Sangam’
Kahatein Hain Gomti Ek Kuwanree Nadee Hain – Shastro Se……Lekin Sangan Hua To Kumari Hone Ka Sansay Hota Hai !
Khair , Aur Bhee Gomtee Nadee Hain……
Kayee Jagah Varnan Hai.
Post Achchha Laga Bhaiya.
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पढ़ कर अच्छा लगा। काश! हम भी साथ होते!
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दो दिन पहले छपरा से वापस आते समय, औड़िहार से बनारस गाड़ी से आये, वह स्थान फिर दिखा, वहाँ जाने की इच्छा और दृढ़ हो चली।
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Hm bhi vha gye the bhut acha lga
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