उनतीस अगस्त। शाम चार बजे। श्री कृष्ण कुमार अटल, महाप्रबन्धक, पूर्वोत्तर रेलवे की रिटायरमेण्ट के पहले अपने विभागाध्यक्षों के साथ अंतिम बैठक। एक प्रकार से वाइण्डिंग-अप।
मैं उस बैठक में विभागाध्यक्ष होने के नाते उपस्थित था। चूंकि उस बैठक में हमें श्री अटल से जाते जाते उनकी 37 वर्ष की रेल सेवा पर उनके विचार और रेलवे के भविष्य पर उनकी सोच सुननी थी; मैं अस्वस्थता के बावजूद दफ्तर गया और सुनिश्चित समय पर बैठक में मौजूद रहा।
श्री अटल के विभिन्न विषयों पर विचार यूं रहे (यह मेरे सुने के अनुसार है। अस्वस्थ होने के कारण मैं पूरी तन्मयता से नहीं सुन/नोट कर पाया, अत: ब्लॉगिंग में जो चूक हो, वह मेरी है) –
पूर्वोत्तर रेलवे पर:
कंजरवेटिव रेलवे (यथा पश्चिम रेलवे) की बजाय यहां किसी नये विचार को लागू कराना कहीं आसान रहा। बढ़ोतरी के लिये रेलवे में नयेपन के प्रति एक्सेप्टेबिलिटी होना बहुत जरूरी है और उस आधार पर पूर्वोत्तर रेलवे में बहुत सम्भावनायें हैं।
काम करने के तरीके पर:
अपने से दो स्टेप आगे के पद पर बैठे लोगों को कभी खौफ से नहीं देखा। उनके कहे को काफी तर्क संगत तरीके से विश्लेषित किया और उनसे सहमत न होने पर अपने विचार पूरी शिद्दत से सामने रखे। अपने आप को रेलवे सम्बन्धी ज्ञान से जितना अपडेट हो सकता था, करने की हमेशा कोशिश की। “ज्ञान का कोई विकल्प है ही नहीं”। लोग सरकार में और रेलवे में भी अपने कम्फर्ट जोन में जीने के आदी हो जाते हैं। किसी ने कहा है कि जो सरकारी नौकरी में तीन साल काम कर ले, वह बेकार हो जाता है। मैं कहूंगा कि रेलवे में जो दस साल काम कर ले, वह बेकार हो जाता है। उसका अपवाद बनने के लिये अपने ज्ञान को सतत परिमार्जित करते रहना चाहिये।
लेडी मेकबेथ को याद किया – प्रबन्धन खून का दरिया है। आगे जाना भी कठिन है और पीछे लौटना भी! 🙂
रेलवे के विभागीय बंटवारे पर:
जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड तक विभागीय प्रबन्धन बहुत जरूरी है। अंतर-विभागीय प्रतिस्पर्धा के बहुत लाभ हैं। पर रेलवे बोर्ड के स्तर पर यह कहा जा सकता है कि रेल तभी प्रगति कर सकती है जब चेयरमैन रेलवे बोर्ड एक बिनोवेलेण्ट डिक्टेटर हो – विभिन्न विभागों के सदस्यों की खींचातानी के परे। रेलवे की समस्या विभागीय आधार पर कम्पार्टमेण्टलाइजेशन है।
अधिकारी जब जनरल मैनेजमेण्ट की पोस्ट पर आयें तो उन्हे अपने विभागीय आधार को पूरी तरह दरकिनार कर देना चाहिये। अधिकारियों को अपनी पोस्ट में आत्म-विकास करना चाहिये और पोस्ट की जिम्मेदारियों के अतिरिक्त आउट-ग्रो करना चाहिये। अन्य सभी विभागों की जरूरतों को समझते हुये।
रेलवे बोर्ड पर:
रेलवे बोर्ड बहुत बड़ा संस्थान बन गया है। वहां बहुत से लोगों के पास बहुत कम काम है और बहुत कम हैं जो काम के बोझ से बहुत लदे हैं। जो बोर्ड में एक बार पोस्टिंग ले लेता है वो येन-केन-प्रकरेण वहीं बने रहना चाहता है। अत: बहुत से अच्छे अधिकारी वहां बरबाद हो रहे हैं और रेलवे को उनकी तकनीकी और प्रबन्धन क्षमता का पूरा लाभ नहीं मिल रहा।
अपने सबसे चलेंजिंग असाइनमेंण्ट पर:
सबसे चैलेंजिंग असाइनमेण्ट रहा ईडी.एमई. (ट्रेक्शन) का।
श्री अटल ने बहुत बेबाकी से बहुत कहा। उनसे यह भी अनुरोध किया गया कि अपने अनुभवों के आधार पर वे पुस्तक लिखें। पर उन्होने कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे। उन्होने पूरी निष्ठा से रेलवे की सेवा की है। रेलवे का नमक खाया है। उसकी कमजोरियों और व्यक्तियों की विवादास्पद निजता को जग जाहिर कर उस नमक के साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। (यद्यपि मेरा सोचना है कि इसमें विश्वासघात जैसा कुछ भी नहीं। वे बहुत बढ़िया कह रहे थे और उनले लिखे मेमॉयर्स बहुमूल्य होंगे। अगर उनमें एक साथ पुस्तक लिखने का धैर्य/पेशेंस न हो तो उन्हे ब्लॉग बना कर वह लिखना चाहिये।)
लगभग एक-सवा घण्टे की बैठक के बाद हम लोग सभा कक्ष के बाहर निकले। महाप्रबन्धक कार्यालय के पोर्टिको में श्री अटल की कार पर फूल सजाये जा रहे थे। भाव भीनी विदाई!
श्री अटल के साथ मैने तीन दशक पहले रतलाम में कार्य किया था। वे वहां सीनियर डिविजनल मैकेनिकल इंजीनियर थे और मैं डिविजनल ऑपरेशंस सुपरिण्टेण्डेण्ट। अब इस समय वे पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक हैं और मैं मुख्य ऑपरेशंस मैनेजर।

श्री अटल एक कुशल गोल्फर भी हैं। गोरखपुर रेलवे गोल्फ क्लब ने आज उनके सम्मान में गोल्फिंग-आउट मैच और समारोह रखा।
विगत कल उनका दफ्तर में अंतिम कार्य दिवस था। आगामी कल शाम वे गोरखपुर से विदा लेंगे अपना कार्यकाल और रेल सेवा के सैंतीस वर्ष सकुशल पूरा कर।
शुभकामनायें!
महाप्रबंधक श्री अटल जी की रेल सेवा पूर्ण करने के पश्चात पूर्वोत्तर रेलवे की ओर से दी गई भावभीनी विदाई का सचित्र वर्णन आपने गागर में सागर सा किया है. कम लाइनों में श्री अटल जी का संदेश हमें आगे रेल सेवा मों प्रोत्साहित करेगा. लगभग सभी विभागों ने अपने महाप्रबंधक महोदय को भावभीनी विदाई दी. यह महाप्रबंधक जी के महान व्यक्तित्व के कारण ही हुआ. महाप्रबंधक जी के कार्यकाल के दौरान ही पूर्वोत्तर रेलवे ने राजभाषा प्रयोग-प्रसार के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए. चाहे वह प्रत्येक क्षेत्रीय बैठक के दौरान नामित विभाग की राजभाषा प्रदर्शनी हो या वेबसाइट के निर्माण पर अंतर्विभागीय प्रतियोगिता या राजभाषा पत्रिका के प्रस्तुतिकरण पर उनका निर्देश… गोरखपुर नराकास में भी अटल जी ने अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी. राजभाषा विभाग भी उनके योगदान को कभी विस्मृत नही कर सकेगा.
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मै तो उनको जानती भी नही, तो रेलवे के कर्मचारी ही इस संबंध में अपनी राय रखने के अधकारी हैं ।पर उनकी सलाहें रेलवे के लिये अवश्य उपयोगी रहेंगी।
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अच्छा विवरण है। सीनियर होने पर नजरिया उदार और व्यापक होने वाली बात से सहमत।
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अटल जी की अनुभव यात्रा सचमुच बहुत काम की सिद्ध होगी। आपको उनकी पुस्तक या ब्लॉग पर सम्प्रेषण की ज़िद जारी रखनी चाहिए।
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